Gold and Dollar: सोने में तेजी खतरे का संकेत, क्या ढहने वाला है डॉलर का किला? एक्सपर्ट की चेतावनी ने बढ़ाई चिंता

नई दिल्ली:
साल 2025 में सोने की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रही है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंक रिकॉर्ड स्तर पर सोना खरीद रहे हैं, जिससे बाजार में हलचल बढ़ गई है।
टैक्सबडी डॉट कॉम के संस्थापक और वित्त विशेषज्ञ सुजीत बंगार (Sujit Bangar) ने इसे मुनाफे का नहीं बल्कि खतरे का संकेत बताया है।

बंगार ने अपनी लिंक्डइन पोस्ट में लिखा है कि केंद्रीय बैंकों ने पिछले एक साल में करीब 3,16,000 किलो सोना खरीदा है, और यह दिखाता है कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में भरोसे की कमी बढ़ रही है।
उनका कहना है कि यह सिर्फ एक ‘रैली’ नहीं, बल्कि वैश्विक संकट की चेतावनी है।


एक साल में 63% बढ़ा सोना

सुजीत बंगार के अनुसार, पिछले एक साल में सोने की कीमतों में 63% की बढ़ोतरी हुई है — जो सामान्य तेजी नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह वही संकेत है जो 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट और कोविड-19 महामारी के दौरान देखने को मिले थे।
पहले जब बाजार में डर का माहौल होता था, तो निवेशक अमेरिकी डॉलर और सरकारी बॉन्ड की ओर रुख करते थे।
लेकिन अब यह ट्रेंड बदल चुका है — अब डर का मतलब है “सोना खरीदो”


डॉलर पर घट रहा भरोसा

सुजीत बंगार का कहना है कि दुनिया भर के निवेशकों का मूड बदल रहा है।
लोग अब सरकारों द्वारा नियंत्रित संपत्तियों से दूरी बना रहे हैं और ऐसी संपत्तियों की ओर बढ़ रहे हैं जो किसी नीति या संस्था पर निर्भर नहीं होतीं, जैसे कि सोना।

उन्होंने कहा —

“सोना डिफॉल्ट नहीं करता, यह छपता नहीं है और किसी नीति के अधीन नहीं चलता। यही इसकी असली ताकत है।”


केंद्रीय बैंकों की रणनीति में बदलाव

पहले चीन, भारत और रूस जैसे देश सोना बेचने वाले थे,
लेकिन अब ये देश सोने के सबसे बड़े खरीदार बन चुके हैं
यह सिर्फ बचाव का तरीका नहीं, बल्कि डॉलर पर निर्भरता घटाने की रणनीति है।

यह ट्रेंड साल 2022 में रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद तेज हुआ,
जब रूस के डॉलर रिजर्व फ्रीज कर दिए गए।
इस घटना ने देशों को दिखा दिया कि डॉलर को भी “हथियार” बनाया जा सकता है।
तभी से दुनिया भर में “सुरक्षित संपत्ति” की परिभाषा बदलने लगी है।


एक्सपर्ट की चेतावनी

बंगार ने कहा है कि सोने की इस रैली को मुनाफे की कहानी नहीं, बल्कि चेतावनी की घंटी समझना चाहिए।
यह संकेत है कि वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर भरोसा कमजोर पड़ रहा है और निवेशक वैकल्पिक सुरक्षा की तलाश में हैं।

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