डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका एक बार फिर सरकारी शटडाउन के संकट का सामना कर रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कांग्रेस समयसीमा तक बजट समझौता करने में विफल रहे, जिसके चलते कई सरकारी कार्यक्रम और सेवाएं ठप होने की कगार पर हैं। यदि स्थिति जल्द नहीं सुलझी तो लाखों कर्मचारियों को बिना सैलरी छुट्टी पर जाना पड़ सकता है और इसका असर वीज़ा से लेकर शिक्षा और पर्यावरण सेवाओं तक पर दिखेगा।
शटडाउन से किस पर पड़ेगा असर?
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कर्मचारी: सरकारी एजेंसियों में काम कर रहे लाखों कर्मचारियों को मजबूरी में छुट्टी पर भेजा जा सकता है। कई पर बर्खास्तगी की गाज भी गिर सकती है।
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शिक्षा व पर्यावरण: शिक्षा, पर्यावरण और अन्य विभागों की सेवाएं प्रभावित होंगी।
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रोज़गार रिपोर्ट: मासिक रोजगार रिपोर्ट समय पर पेश हो भी सकती है और नहीं भी, जिससे बाज़ार में अनिश्चितता बढ़ेगी।
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वीज़ा और प्रवासी समुदाय: शटडाउन का असर H-1B वीज़ा प्रोसेसिंग और अन्य इमीग्रेशन सेवाओं पर भी पड़ सकता है।
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जरूरी सेवाएं जारी: सीमा सुरक्षा, अस्पतालों में चिकित्सा, कानून प्रवर्तन और हवाई यातायात नियंत्रण जैसी आवश्यक सेवाएं बाधित नहीं होंगी।
क्यों होता है शटडाउन?
अमेरिकी संविधान के अनुसार संघीय एजेंसियों को चलाने के लिए कांग्रेस से बजट या फंडिंग बिल पारित होना ज़रूरी है। जब राजनीतिक मतभेद या गतिरोध के चलते तय समयसीमा में फंडिंग बिल पास नहीं हो पाता, तो सरकार के पास धन खत्म हो जाता है और उसे अपनी गैर-जरूरी सेवाएं बंद करनी पड़ती हैं। इसे ही सरकारी शटडाउन कहा जाता है।
अब तक कितनी बार हुआ शटडाउन?
अमेरिका में 1981 से अब तक 16 बार शटडाउन हो चुका है।
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सबसे लंबा शटडाउन दिसंबर 2018 में हुआ, जो 35 दिनों तक चला।
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2013 में ओबामा के कार्यकाल में यह 16 दिन तक चला था।
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1995 में बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति कार्यकाल में 21 दिन का शटडाउन हुआ था।
आर्थिक असर कितना गहरा?
थिंक टैंक बाइपार्टिसन पॉलिसी सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, शटडाउन न केवल देश पर आर्थिक बोझ बढ़ाता है, बल्कि भय और भ्रम का माहौल भी पैदा करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह स्थिति लंबी चली तो अमेरिका की आर्थिक वृद्धि पर सीधा असर पड़ेगा और कुछ ही दिनों में बाज़ारों पर झटका साफ दिखाई देगा।
