भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि देश में शासन सिर्फ और सिर्फ कानून और संविधान के आधार पर चलेगा, न कि ताकत या मनमानी के दम पर। मॉरीशस में आयोजित ‘रूल ऑफ लॉ मेमोरियल लेक्चर’ के दौरान उन्होंने कहा कि भारत कानून का राज मानने वाला देश है, जहां हर नागरिक और हर सत्ता-धारी को कानून का पालन करना होगा।
गवई ने अपने कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि “भारत कानून से चलता है, बुलडोजर से नहीं”। उन्होंने कहा कि कानून की असली ताकत न्याय, समानता और इंसाफ में है, न कि सत्ता के दुरुपयोग में।
भारत और मॉरीशस का रिश्ता
अपने भाषण की शुरुआत में उन्होंने भारत और मॉरीशस के गहरे रिश्तों को याद किया। गवई ने कहा कि दोनों देशों ने उपनिवेशवाद की पीड़ा सही है और आज लोकतांत्रिक समाज के रूप में एक-दूसरे के साथी बने हुए हैं।
गांधी और अंबेडकर की सोच का उल्लेख
मुख्य न्यायाधीश ने महात्मा गांधी के उस विचार को दोहराया कि हर निर्णय लेने से पहले सोचना चाहिए कि उसका असर सबसे गरीब और आखिरी व्यक्ति पर क्या होगा। वहीं डॉ. भीमराव अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि संविधान ने सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए बेहद बारीक नियम तय किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले
गवई ने कई ऐतिहासिक केस का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे अदालतों ने कानून के राज को मजबूत किया:
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केशवानंद भारती केस (1973): जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद संविधान की मूल संरचना को नहीं बदल सकती।
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मेनका गांधी केस (1978): जिसमें साफ किया गया कि कोई भी कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और तार्किक होना चाहिए।
निष्कर्ष
बीआर गवई का यह बयान न सिर्फ भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की मजबूती को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि कानून से बड़ा कोई नहीं—न नागरिक, न सत्ता और न ही कोई संस्थान।
