नई दिल्ली।
भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस MK1A ने उड़ान भरकर ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नई ऊंचाई छू ली है, लेकिन इसके जंगी बेड़े में शामिल होने की राह में एक नई रुकावट आ गई है। कारण — इस विमान के सबसे अहम हिस्से, इज़रायली रडार के सोर्स कोड का अब तक भारत को न मिल पाना।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस MK1A पूरी तरह तैयार है, लेकिन इसके सॉफ्टवेयर और मिसाइल एकीकरण में दिक्कतें सामने आ रही हैं। इस एडवांस जेट में इज़रायल का ELTA EL/M-2052 AESA रडार लगाया गया है, जो दुश्मन के टारगेट को 150 किलोमीटर दूर तक ट्रैक कर सकता है।
🔹 रडार का ‘सोर्स कोड’ क्यों बना सबसे बड़ा अड़ंगा?
रडार का मुख्य सॉफ्टवेयर या ‘सोर्स कोड’ इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) के पास है।
भारत इस रडार का लाइसेंस प्रोडक्शन तो कर रहा है, लेकिन इसके कोड पर नियंत्रण इज़रायल के पास है।
इसी वजह से DRDO की ‘अस्त्र MK1’ हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल को इस रडार से जोड़ने में तकनीकी दिक्कतें आ रही हैं।
मार्च 2025 में हुए एक टेस्ट के दौरान सॉफ्टवेयर गड़बड़ियों की वजह से मिसाइल और रडार का सिंक्रोनाइज़ेशन फेल हो गया।
अब DRDO को इज़रायल से सोर्स कोड की मंजूरी (ग्रीन सिग्नल) का इंतजार है ताकि दोनों सिस्टम एक-दूसरे के साथ सही तालमेल में काम कर सकें।
🔹 HAL का दावा — ‘विमान संरचनात्मक रूप से तैयार है’
HAL के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. डी. के. सुनील ने बताया कि तेजस MK1A पूरी तरह स्ट्रक्चरल रूप से तैयार है।
उनके अनुसार, “भविष्य में यदि रडार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम या हथियार क्षमताओं में कोई बदलाव होता है, तो सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए आसानी से निपटा जा सकेगा।”
लेकिन यह तभी संभव होगा जब रडार के सॉफ्टवेयर को भारत अपने सिस्टम से जोड़ सके — यानी जब इज़रायल सोर्स कोड साझा करे।
🔹 फ्रांस और अमेरिका से सबक, फिर वही कहानी?
यह पहली बार नहीं है जब भारत को अपने रक्षा सौदों में ‘सोर्स कोड’ की दीवार से टकराना पड़ा हो।
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राफेल जेट के लिए फ्रांस से कोड हासिल करने में भारत को भारी दिक्कत आई थी।
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अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) भी इंजन तकनीक साझा करने को लेकर टालमटोल करती रही है।
अब वही स्थिति इज़रायल के साथ दिख रही है, जिससे भारत के लिए तेजस MK1A की डिलीवरी समय पर देना मुश्किल होता जा रहा है।
🔹 तेजस MK1A: भारत की शान, लेकिन मंज़िल अभी बाकी
तेजस MK1A में लगने वाला AESA रडार न सिर्फ युद्ध के हालात में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि यह विमान को ‘बियोंड विजुअल रेंज’ (BVR) यानी 150 किलोमीटर दूर तक खतरे को पहचानने की क्षमता देता है।
यह पूरी तरह से डिजिटल एवियोनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम, और अत्याधुनिक हथियारों से लैस है।
भारतीय वायुसेना ने 2029 तक 83 तेजस MK1A विमान प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
लेकिन जब तक इज़रायल से कोड नहीं मिलता, तब तक HAL की नासिक यूनिट में खड़े ये विमान औपचारिक मंजूरी (FOC) का इंतजार करते रहेंगे।
🔹 आगे की राह — स्वदेशी समाधान या रणनीतिक साझेदारी?
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब ऐसे विदेशी सौदों में “सॉफ्टवेयर स्वतंत्रता” की शर्त पहले से तय करनी चाहिए।
‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत DRDO और BEL पहले से ही स्वदेशी AESA रडार विकसित करने पर काम कर रहे हैं।
अगर यह तकनीक सफल रही, तो भविष्य में भारत को किसी अन्य देश के कोड या अनुमति पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
निष्कर्ष:
तेजस MK1A भारत की तकनीकी ताकत का प्रतीक है — लेकिन इसका भविष्य अब इज़रायल की मंजूरी पर टिका है।
अगर भारत को यह सोर्स कोड मिल जाता है, तो न सिर्फ यह विमान भारतीय वायुसेना की रीढ़ बनेगा, बल्कि देश की रक्षा आत्मनिर्भरता की उड़ान और ऊंची हो जाएगी।
वरना, इतिहास दोहराएगा — और तेजस की रफ्तार “तकनीकी कूटनीति” की दीवार में अटक सकती है।
