पटना- बिहार विधानसभा चुनावों की सरगर्मी तेज़ है और राजनीतिक दल अपने-अपने वादों की झड़ी लगा रहे हैं। लेकिन मिथिलांचल की धरती पर इस बार मतदाता केवल घोषणाओं से प्रभावित नहीं दिख रहे — वे उन वादों की विश्वसनीयता और कार्यान्वयन की संभावनाओं पर भी सवाल उठा रहे हैं।
वादों और ‘रेवड़ी राजनीति’ पर जनता की राय
एनडीए और महागठबंधन, दोनों ने ही चुनाव से पहले कई आर्थिक राहत योजनाएं और सौगातें घोषित की हैं। महिलाओं के खातों में नकद राशि, मुफ्त राशन और सामाजिक योजनाओं का वादा ज़ोर-शोर से किया जा रहा है।
मगर मधुबनी के बेनीपट्टी मेन रोड पर हो रही चर्चाओं में युवाओं का कहना है कि यदि इन्हीं पैसों से उद्योग या रोज़गार के अवसर बनाए जाते तो राज्य को स्थायी लाभ मिलता। एक युवक ने टिप्पणी की — “क्या बिहार का विकास सिर्फ मुफ्त राशन और एक बार की सहायता राशि से होगा?”
रोजगार और विकास पर नई सोच
स्थानीय युवाओं का बड़ा तबका मानता है कि बिहार को अब स्वरोजगार और उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए। राजनगर के एक युवक ने कहा कि दूसरे राज्यों में फैक्ट्री और औद्योगिक निवेश से तरक्की हो रही है, जबकि बिहार के लोग आज भी रोज़गार के लिए पलायन कर रहे हैं।
शराबबंदी और सामाजिक समीकरणों पर भी बहस
राजनगर क्षेत्र के कुछ मतदाताओं ने राज्य में शराबबंदी कानून की वास्तविक स्थिति पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि यह नीति ज़मीनी स्तर पर प्रभावी नहीं रही और अवैध कारोबार फल-फूल रहा है।
वहीं, कुछ शिक्षित मतदाताओं ने यह भी कहा कि बिहार को विकास की राह पर आगे बढ़ने के लिए जाति-पंथ की राजनीति से ऊपर उठना होगा।
कड़ा मुकाबला, ऊंची उम्मीदें
मधुबनी जिले की 10 विधानसभा सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला कड़ा है। पिछली बार अधिकांश सीटें सत्ताधारी दलों के खाते में गई थीं, लेकिन इस बार मतदाताओं का रुख अधिक सतर्क और विश्लेषणात्मक है।
स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता भी जानते हैं कि जीत इस बार सिर्फ नारों से नहीं, बल्कि विश्वसनीय वादों और भरोसेमंद नेतृत्व पर निर्भर करेगी।
