केंद्र सरकार ने दालों में आत्मनिर्भरता मिशन को दी मंजूरी | Pulses Mission 2025-26 से 2030-31 तक

नई दिल्ली, 01 अक्टूबर 2025 – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में “दालों में आत्मनिर्भरता मिशन (Mission for Aatmanirbharta in Pulses)” को मंजूरी दी गई। यह ऐतिहासिक योजना 2025-26 से 2030-31 तक लागू होगी और इसके लिए 11,440 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया है।


दालों में आत्मनिर्भरता मिशन की मुख्य बातें

👉 350 लाख टन उत्पादन लक्ष्य – 2030-31 तक देश में दालों का उत्पादन 350 लाख टन तक पहुँचाना।
👉 88 लाख मुफ्त सीड किट – किसानों को नवीनतम किस्मों के बीज उपलब्ध कराए जाएंगे।
👉 2 करोड़ किसानों को लाभ – बेहतर बीज, आधुनिक तकनीक, प्रसंस्करण व सरकारी खरीद से सीधा फायदा।
👉 1000 प्रोसेसिंग यूनिट – कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और वैल्यू एडिशन बढ़ाने के लिए।
👉 100% सरकारी खरीद – अगले 4 साल तक अरहर (Tur), उड़द (Urad) और मसूर (Masoor) की एमएसपी पर पूरी खरीदारी।


किसानों को कैसे मिलेगा फायदा?

सरकार का यह मिशन किसानों के लिए आय दोगुनी करने का साधन बनेगा।

  • किसानों को उन्नत किस्मों के बीज मुफ्त और सब्सिडी पर उपलब्ध होंगे।

  • फसल कटाई के बाद नुकसान कम करने के लिए 1000 नए दाल प्रसंस्करण और पैकेजिंग यूनिट लगाई जाएंगी।

  • ICAR और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के जरिए किसानों को नई तकनीक और टिकाऊ कृषि पद्धतियों का प्रशिक्षण मिलेगा।

  • फसल विविधीकरण और इंटरक्रॉपिंग को बढ़ावा मिलेगा, खासकर धान की परती (Rice fallow) भूमि पर।


बीज उत्पादन और वितरण योजना

  • 126 लाख क्विंटल सर्टिफाइड बीज 2030-31 तक किसानों को वितरित किए जाएंगे।

  • ICAR द्वारा ब्रीडर सीड उत्पादन की निगरानी होगी।

  • राज्य व केंद्र की एजेंसियों द्वारा फाउंडेशन और सर्टिफाइड बीज तैयार किए जाएंगे।

  • SATHI पोर्टल पर सीड प्रोडक्शन और ट्रेसबिलिटी की निगरानी होगी।


दालों की खरीद और मूल्य स्थिरता

  • अगले 4 वर्षों तक NAFED और NCCF द्वारा किसानों से 100% MSP पर खरीद की जाएगी।

  • किसानों का विश्वास बनाए रखने के लिए वैश्विक दाल कीमतों की निगरानी तंत्र भी बनाया जाएगा।


2030-31 तक लक्ष्य

✅ दालों की खेती का क्षेत्र बढ़कर 310 लाख हेक्टेयर होगा।
✅ उत्पादन बढ़कर 350 लाख टन और औसत उत्पादकता 1130 किलो/हेक्टेयर तक पहुँचेगी।
विदेशी मुद्रा की बचत होगी क्योंकि दालों का आयात कम होगा।
किसानों की आय और रोज़गार दोनों बढ़ेंगे।
जलवायु अनुकूल खेती और मिट्टी की सेहत में सुधार होगा।

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