राष्ट्र की स्मृतियों में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो समय की सीमाओं से परे जाकर पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। इस सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे ही दो महापुरुषों—लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी—को उनकी जयंती पर स्मरण कर देशवासियों का ध्यान फिर से उन आदर्शों की ओर खींचा है, जिन पर भारत की आत्मा टिकी हुई है।
शास्त्री जी को उनकी 121वीं जयंती पर याद करते हुए प्रधानमंत्री ने उनके उस सरल किन्तु सशक्त नेतृत्व को रेखांकित किया, जिसने भारत को युद्ध और आर्थिक संकट जैसे कठिन दौर में भी आत्मबल दिया। “जय जवान, जय किसान” केवल एक नारा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान की वह पुकार थी जिसने भारत के गांव और सीमांत दोनों को जोड़कर एकजुटता की मिसाल पेश की। आज जब हम खाद्य सुरक्षा और रक्षा क्षमता पर गर्व करते हैं, तो यह शास्त्री जी की दूरदर्शिता का ही प्रतिफल है।
वहीं, महात्मा गांधी की 156वीं जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी का संदेश हमें यह याद दिलाता है कि सादगी, अहिंसा और सत्य की राह केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि आज के भारत के लिए भी मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। गांधीजी ने दिखाया कि साहस और सादगी, सत्ता से बड़ा बल है। आज जब दुनिया हिंसा और उपभोग की दौड़ से जूझ रही है, तब गांधीजी का जीवन हमें संयम, सहअस्तित्व और नैतिकता की ओर लौटने का आग्रह करता है।
प्रधानमंत्री की श्रद्धांजलि केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि यह संकेत है कि राष्ट्र निर्माण की यात्रा में हमें अतीत से प्रेरणा लेते हुए वर्तमान और भविष्य को संवारना है। शास्त्री और गांधी—दोनों ने यह सिखाया कि कठिनाइयाँ कितनी भी बड़ी हों, यदि नेतृत्व नैतिक हो और जनता दृढ़ संकल्पित, तो कोई भी बाधा राष्ट्र की प्रगति को रोक नहीं सकती।
आज आवश्यकता है कि हम इन आदर्शों को केवल जयंती पर स्मरण न करें, बल्कि उन्हें जीवन और नीति का हिस्सा बनाएं। शास्त्री जी के “कार्य ही पूजा है” और गांधीजी के “सत्य ही ईश्वर है” जैसे मंत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे।
देश की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके सपनों को अपने कर्म और संकल्प से साकार करें।
