जब भी Pregnancy Tourism की चर्चा होती है तो दिमाग में अमेरिका या कनाडा जैसे देशों का नाम आता है, जहां गर्भवती महिलाएं बच्चे की जन्म-आधारित नागरिकता (Jus Soli) पाने के लिए यात्रा करती हैं। लेकिन लद्दाख की आर्यन घाटी में प्रेग्नेंसी टूरिज्म की परिभाषा बिल्कुल अलग है। यहाँ मामला नागरिकता या स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ा नहीं, बल्कि मिथकों, लोककथाओं और नस्लीय शुद्धता से जुड़ा हुआ है।
ब्रोकपा समुदाय और “शुद्ध आर्यन” की दास्तान
लद्दाख के दाह, हानू, दारचिक, बियामा और गरकॉन गांवों में रहने वाला ब्रोकपा समुदाय खुद को आर्यन वंशज मानता है।
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इनकी पहचान अलग शारीरिक लक्षणों से होती है: लंबा कद, गोरी त्वचा और हल्के रंग की आंखें।
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टूरिज़्म ने इन्हें “लास्ट प्योर आर्यन” के रूप में ब्रांड कर दिया है।
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एक मान्यता यह भी है कि वे सिकंदर महान के सैनिकों के वंशज हैं।
हालांकि इतिहासकारों और Geneticists ने इस दावे को वैज्ञानिक आधार पर खारिज कर दिया है।
क्या सचमुच आती हैं विदेशी महिलाएं?
स्थानीय कहानियों और कुछ ट्रैवेलॉग्स में दावा किया गया है कि विदेशी महिलाएं यहां आकर आर्यन बच्चे पैदा करना चाहती हैं।
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कुछ ग्रामीणों ने इसे सच बताया,
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जबकि कई लोग और गांव के मुखिया ने इसे सिर्फ अफवाह कहा।
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माना जाता है कि यह कहानी पर्यटन को आकर्षित करने के लिए फैलाई गई हो सकती है।
सच्चाई
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अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि यहां संगठित रूप से प्रेग्नेंसी टूरिज्म होता है।
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ज्यादातर बातें गपशप और अफवाहों पर आधारित हैं।
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यह कहानी लद्दाख के पर्यटन और संस्कृति से जुड़ी एक लोकप्रिय किंवदंती भर लगती है।
