बीजिंग/वॉशिंगटन। अमेरिका में H-1B वीज़ा की फीस में भारी बढ़ोतरी के बीच चीन ने विदेशी पेशेवरों को लुभाने के लिए K वीज़ा की नई श्रेणी की घोषणा की है। चीन का यह कदम वैश्विक टैलेंट की होड़ में अमेरिका को सीधी चुनौती माना जा रहा है।
अमेरिका में H-1B वीज़ा हुआ महंगा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीज़ा की फीस को लगभग 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 88 लाख रुपये कर दिया है। इस भारी वृद्धि से आईटी और टेक सेक्टर के हज़ारों विदेशी पेशेवर चिंतित हैं, क्योंकि H-1B वीज़ा अमेरिका में कुशल प्रोफेशनल्स के लिए सबसे लोकप्रिय वर्क वीज़ा है।
चीन का मास्टरस्ट्रोक: K वीज़ा
इसी बीच चीन ने रविवार को जारी आधिकारिक बयान में कहा कि वह 1 अक्टूबर 2025 से K वीज़ा लागू करेगा। अगस्त में स्वीकृत यह नीति देश में एंट्री और एग्जिट के प्रशासनिक नियमों में संशोधन के साथ पेश की गई है।
नए K वीज़ा का लक्ष्य है दुनिया भर से खासकर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों के युवा और प्रतिभाशाली प्रोफेशनल्स को आकर्षित करना। विशेषज्ञ इसे अमेरिकी H-1B का “चीनी वर्ज़न” मान रहे हैं।
वैश्विक टैलेंट की नई जंग
जहां दुनिया के अन्य देश वीज़ा शुल्क बढ़ा रहे हैं, वहीं चीन ने कम लागत और आसान प्रक्रिया का संकेत देकर विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। यह कदम न केवल चीन की टेक्नोलॉजी और इनोवेशन क्षमता को बढ़ावा देगा, बल्कि अमेरिका की टैलेंट पॉलिसी को भी सीधी चुनौती देगा।
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि K वीज़ा के जरिए चीन वैश्विक प्रतिभाओं को खींचने में अहम भूमिका निभा सकता है और आने वाले समय में हाई-टेक उद्योगों में प्रतिस्पर्धा को नया आयाम देगा।
