ए रिज़वी, हमेशा सक्रिय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर एक सवाल हमेशा बहस में रहा है – आखिर नागपुर मुख्यालय पर संघ ने 52 साल तक राष्ट्रीय ध्वज क्यों नहीं फहराया? विपक्ष इस मुद्दे पर अक्सर सवाल खड़ा करता रहा है, और संघ भी इस पर कई बार सफाई दे चुका है। लेकिन इसके पीछे की वजहें आज भी लोगों के बीच जिज्ञासा का विषय हैं।
मोहन भागवत का जवाब और 1933 की घटना
करीब दो साल पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत से प्रेस कॉन्फ्रेंस में यही सवाल पूछा गया। उन्होंने 1933 में घटी एक घटना का जिक्र किया, जब जलगांव के पास कांग्रेस के सम्मेलन में पंडित नेहरू झंडा फहरा रहे थे और ध्वज फंस गया। भीड़ में से एक युवक खंभे पर चढ़ा और झंडा ठीक किया। बाद में पता चला कि वह युवक संघ का स्वयंसेवक था।
भागवत ने कहा –
“जहां राष्ट्रध्वज का सम्मान होगा, वहां हम हमेशा सबसे आगे होंगे, चाहे जान देनी पड़े।”
पहली थ्योरी: संविधान और फ्लैग कोड की मजबूरी
पहली थ्योरी के अनुसार, संविधान और फ्लैग कोड ऑफ इंडिया में आम जनता और निजी संगठनों को झंडा फहराने की अनुमति नहीं थी। केवल सरकारी संस्थान, अदालतें और खास इमारतें ही तिरंगा फहरा सकती थीं।
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2002 में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैग कोड संशोधन के बाद आम नागरिकों और संस्थाओं को झंडा फहराने का अधिकार दिया।
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इसके बाद ही RSS ने 26 जनवरी 2002 को नागपुर मुख्यालय पर औपचारिक रूप से ध्वज फहराना शुरू किया।
दूसरी थ्योरी: खास मौकों पर अनुमति थी
दूसरी थ्योरी कहती है कि 2002 से पहले भी 15 अगस्त, 26 जनवरी और 2 अक्टूबर जैसे राष्ट्रीय अवसरों पर आम लोग और संस्थान झंडा फहरा सकते थे।
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उदाहरण: स्कूलों और निजी संस्थानों में इन अवसरों पर झंडा फहराया जाता था।
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इंटरनेट पर उपलब्ध 1971 के गृह मंत्रालय के लेटर और 1982 के प्रोटोकॉल मैनुअल इस बात की पुष्टि करते हैं।
यानी कानूनी तौर पर संघ भी इन खास मौकों पर झंडा फहरा सकता था।
नवीन जिंदल की लड़ाई और 2002 का फैसला
इस बहस को नया मोड़ मिला नवीन जिंदल की याचिका से। 1995 में उन्हें अपनी फैक्ट्री पर झंडा फहराने से रोका गया था, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
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15 जनवरी 2002 को PD शिनॉय कमेटी की सिफारिशें मान ली गईं।
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26 जनवरी 2002 से हर नागरिक को किसी भी दिन तिरंगा फहराने की अनुमति मिल गई।
तो सच क्या है?
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पहली थ्योरी कहती है कि RSS ने कानून का पालन करते हुए झंडा नहीं फहराया।
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दूसरी थ्योरी के अनुसार, राष्ट्रीय अवसरों पर झंडा फहराने की छूट थी, लेकिन संघ ने ऐसा नियमित रूप से नहीं किया।
2002 से लेकर अब तक, RSS हर साल अपने नागपुर मुख्यालय पर ध्वज फहराता है। संघ का दावा यह भी है कि 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 को उन्होंने झंडा फहराया था।
निष्कर्ष
RSS के झंडा न फहराने के पीछे संविधान और परंपरा दोनों की व्याख्या है। एक ओर कानूनी पाबंदियों का हवाला दिया गया, तो दूसरी ओर यह तर्क भी सामने आता है कि राष्ट्रीय अवसरों पर कोई रोक नहीं थी।
आज, जब हर नागरिक स्वतंत्र रूप से तिरंगा फहरा सकता है, यह सवाल इतिहास की बहस बनकर रह गया है — लेकिन हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा लहराना अब संघ की परंपरा का हिस्सा है।
